मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल
मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं
बादल बनकर उड़ता फिरता
रिमझिम धरती पर गिरता हूं
आता हूं मूसलाधार कभी
हाहाकार मचा देता हूं
नदी नाले ताल तलैया
कुएं बावड़ी भरता हूं
धरती पर हरियाली लाता
सब की प्यास बुझाता हूं
जीवन हूं मैं सब जीवों का
जल जीवन देता हूं
उपजाता हूं अन्नधान्य
वृक्षों को जीवन देता हूं
जल जंगल जमीन शिखर
सबकी सुध लेता हूं
मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं
चलते रहना ही धर्म मेरा
मैं गतिशील रहता हूं
गंतव्य पर जाकर
स्वामी (समुद्र) के जल में जा मिलता हूं
उड़ जाता हूं बाष्प रूप में
और बादल बन जाता हूं
जीव जंतु कि त्रिशा मिटाने
धरती पर आ जाता हूं
मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी