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17 May 2021 · 1 min read

मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल

मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं
बादल बनकर उड़ता फिरता
रिमझिम धरती पर गिरता हूं
आता हूं मूसलाधार कभी
हाहाकार मचा देता हूं
नदी नाले ताल तलैया
कुएं बावड़ी भरता हूं
धरती पर हरियाली लाता
सब की प्यास बुझाता हूं
जीवन हूं मैं सब जीवों का
जल जीवन देता हूं
उपजाता हूं अन्नधान्य
वृक्षों को जीवन देता हूं
जल जंगल जमीन शिखर
सबकी सुध लेता हूं
मैं नदिया का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं
चलते रहना ही धर्म मेरा
मैं गतिशील रहता हूं
गंतव्य पर जाकर
स्वामी (समुद्र) के जल में जा मिलता हूं
उड़ जाता हूं बाष्प रूप में
और बादल बन जाता हूं
जीव जंतु कि त्रिशा मिटाने
धरती पर आ जाता हूं
मैं वर्षा का नीर हूं निर्मल
उज्जवल धारा में बहता हूं

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

7 Likes · 14 Comments · 426 Views
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