मैं बतानें के काबिल नहीं
क्या तुम भी परेशां होते हो आजकल मेरी तरह।
ऐसे ही यूँ भटकते हो क्या हर वक़्त शामो सुबह।।1।।
मैं बताने के काबिल नही हूँ अपनी खैरों खबर।
क्या तुम्हारा भी होता नही ऐसे अपनों में बशर ।। 2।।
मेरी बर्बादी में क्या दुश्मन दोस्त भी है शामिल।
बुरा क्या मानूँ चलो ये तज़ुर्बा ही हुआ हासिल।।3।।
हुआ है जो,उसका किसी से भी शिकवा नहीं ।
किस्मत थी मेरी यह किसी का भी धोका नहीं।।4।।
कोई भी इल्जाम ना दूंगा मैं ज़िन्दगी में तुम्हें।
यूँ डरने की जरूरत नही ऐसे अंदेशों से तुम्हें।।5।।
हो मुबारक तुम्हे ज़िन्दगी में अपनी खुशियाँ।
और क्या कहें जब रिश्तों में हो इतनी दूरियाँ।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ