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20 Jan 2024 · 1 min read

मैं बंजारा बन जाऊं

कभी कभी लगता हैं मुझको,मैं बंजारा बन जांऊ l
फिर दुनिया के राग दोष से, मैं भी मुक्ति पा जाऊं ll
ये गोरे काले का रंगभेद, ये ऊंच नीच ये जात पात l
ये गहरी खाई चल रही, कब से दुनिया के साथ साथ ll
शहर में फिर भी चलता हैं, कहीं किधर भी डोलो तुम l
गांव गली चौपाल में अब भी, वही पुरानी रून झुन झुन ll
जीते जी न साथ छोड़ती, मरने के भी बाद नहीं l
संविधान से चलता भारत, फिर क्यों ये वहिष्कार नहीं ll
कभी कभी लगता हैं मुझको,मैं बंजारा बन जांऊ l
फिर दुनिया के राग दोष से, मैं भी मुक्ति पा जाऊं ll

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