मैं फूल थी
मैं फूल थी
जिसने मुझे देखा,
मैं उसे अच्छी लगी
जिसने मुझे पाया,उसे महक तो देनी ही थी
महक से उसका जी भर गया !
मेरा दिन ठहर गया
उसने मुझे मसल दिया
मैं कुम्हला गयी,मुरझा गयी
पहले मुझे डाल से तोडा गया
अब मैं दिल से टूट गयी
मैं फूल थी
इसलिए मिटती चली गयी ।
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स्वरचित/मौलिक
पंकज पाण्डेय “सावर्ण्य”