मैं पृष्ठ कहाँ से लाऊँ
मैं पृष्ठ कहाँ से लाऊं
मैं गीत कहाँ से गाऊँ
हैं शब्दों के ऋण तेरे
मैं प्रीत कहाँ से पाऊँ।
माना इस नगरी में
तेरे सब साथी हैं
सुख दुख बस आँखों का
गिरता हुआ पानी है
मैं सपन कहाँ से लाऊँ
मैं अगन कहाँ से पाऊँ।।
यह ब्रह्मनाद शब्दों का
कह सृजन भी है मेरा
कुछ अतीत की बातें हैं
यह अर्चन भी है मेरा
मैं ग्रंथ कहाँ से लाऊँ
मैं दर्श कहाँ से पाऊँ।
है झिलमिल सितारों से
ज्यूँ शशिमुख सूरज का
बस, अठखेली बचपन की
यौवन यह काग़ज़ का
मैं भुवन कहाँ से लाऊँ
मैं गगन कहाँ सजाऊँ।
सूर्यकांत द्विवेदी