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9 Aug 2020 · 1 min read

मैं पत्थर हूं…

चलो घिस लो हमें कि पत्थरें नहीं रोती है
घिस कर भी अपनी खासियत नहीं खोती है

कभी मेहंदी, कभी चानन को पिसती है
पत्थर से पत्थर घिस दो तो आग होती है

कभी नदियां उतरती है, कभी कुएं की मुंडेर बनती हैं
तुम्हारे घर की नीबों से मन्दिर मस्जिद तक में सजती हैं

कभी घर बनाती है कभी चूल्हा जलाती है
कभी सर पे पड़े तो सर को फोड़ जाती है

कभी बलबे कराती है, कभी जलबे दिखाती है
मैं पत्थर हूं पत्थर में आग और आवाज़ होती है

~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 395 Views
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