मैं पतंग उड़ाता हूँ!
तुम कहते हो
मैं तुम्हारा मजाक उड़ाता हूँ
नहीं, कदापि नहीं !
मैं तो पतंग उडा़ता हूँ, बहुत खुश होता हूँ जब
आँगन में बैठीं गौरैयों को फुर्र उडा़ता हूँ
चिड़ियाँ फिर लौट आती हैं
तो मैं उन्हें दाने चुगाता हूँ।
रिमझिम बारिस में
बच्चों की कागज की नाव बनाता हूँ
मौसम कैसा भी हो जिंदगी का
गीत गाता हूँ, नहाता हूँ, गुनगुनाता हूँ
जो भी मिलता है उम्र में छोटा या बड़ा
सीखकर सभी से,तजुर्बों को मित्र बनाता हूँ
किसी को उल्लू बनाना मेरा शौक नहीं
किसी को अच्छा लगे तो
उसके लिए ‘बन’ जाता हूँ!
मैं आदमी शायद बुरा नहीं कृष्णधर
तभी तो, आप भूलना चाहते हैं
पर, बार-बार आपको याद आता हूँ।
कृष्णधर(मुकेश कुमार बड़गैयाँ)