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7 Sep 2022 · 1 min read

मैं नहीं मगर

मैं नहीं मगर
बरामदे पे रखे गेरुवे फूलदान पूछ रहे थे
उन पर अपने अल्फ़ाज़ का पानी कब डालोगी।
घर की हवादार खिड़कियाँ पूछ रही थी
तुम उन्हें नए पर्दों का तोहफ़ा कब दोगी।

मैं नहीं मगर
फ़र्श पूछ रही थी
तुम उसे रंगोली से कब सजाओगी।
अलमारी की किताबें पूछ रही थी
तुम उन्हें मुस्कुराते हुए कब पढ़ोगी।

मैं नहीं मगर
आईना पूछ रहा था
तुम उसे देखकर कब ख़ुदको निहारोगी।
रसोई पूछ रही थी
गुनगुनाते हुए खाना कब पकाओगी।

मैं नहीं मगर
घर का बिस्तर पूछ रहा था
तुम दिन भर की थकन कब मिटाओगी।
वो नर्म तकिया पूछ रहा था
कब उसे सीने से लगाओगी ।

मैं नहीं मगर
पूरा घर पूछ रहा था
तुम लौटकर कब आओगी।

-जॉनी अहमद ‘क़ैस’

Language: Hindi
1 Like · 136 Views
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