“मैं दर्द हूँ…”
मैं दर्द हूँ …
कभी आँख से टपक जाती हूँ,
कभी साँस में दफ्न हो जाती हूँ,
देखना कभी छूकर मुझे,
मैं कोई तस्वीर नही,
जिसे फ्रेम कर सको,
मैं दर्द हूँ…
कभी आह! में डूब जाती हूँ,
कभी मौन में समा जाती हूँ,
महसूस करना कभी मुझे,
मेरा कोई रंग नही,
जो कभी बदरंग हो जाऊँ,
मैं तो दर्द हूँ…
कभी संगीत बन जाती हूँ,
कभी मौन बन जाती हूँ,
कभी चीख बन जाती हूँ,
कभी अतीत में दफ्न हो जाती हूँ,
कभी वाह! के रंग में रंग जाती हूँ,
हाँ! मैं तो दर्द हूँ…
एक दरिया हूँ,
मैं तुच्छ नहीं विराट हूँ,
शुष्क नहीं नम हूँ,
गगन सी विस्तृत हूँ,
श्वेत नहीं स्याह हूँ,
क्योंकि मैं तो दर्द हूँ…
…निधि…