मैं तो अब भी तुममें ही जीता हूं
दिन भर गर्मी में जलता हूं!
तब तुमको खुश करता हूं!
तुम मुझको नहीं समझते!
कैसे ख्वाइश पूरी करता हूं!!
सुबह निकलता हु सूरज बनकर!
सूरज सा ही हर शाम ढलता हूं!!
क्या अब तुम मुझे नहीं समझते!
तुममें हर रोज उजाले भरता हूं!!
माना माँ की ममता में नहीं दिखा मैं!
गाड़ी का एक पहिया मैं भी बनता हूं!!
मत कहना दूर हुआ हूं आँखों से
मैं तो अब भी तुममें ही जीता हूं
-सोनिका मिश्रा