मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि——————
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि—————-
तुम्हारी जाति क्या है ?
तुम किस धर्म से सम्बंध रखते हो ?
और इससे भी मुझको मतलब नहीं,
कि तुम किस ईश्वर की उपासना करते हो ?
तुम भारतीय हो और,
मैं भी हिंदुस्तानी हूँ ,
मैं चाहूंगा कि जो अखण्ड परम्परा,
हिंदुस्तान को बाँधे हुए हैं एक सूत्र में,
यहाँ के लोगों के मन-मस्तिष्क को,
यह परम्परा खण्डित नहीं हो।
प्राचीन काल में जो स्वर,
गूंजे हैं इस धरा पर,
मैं चाहता हूँ वही संगीत,
तुम्हारे हृदय से निकले,
वही गीत तुम्हारी कलम से,
इस देश के लिए सृजित हो।
ऋषि- मुनियों-तपस्वियों-महापुरुषों ने,
जैसे बनाया है इसको जगतगुरु,
मैं चाहता हूँ तुम्हारी जीवनशैली से भी,
सुंगधित हो वैसा ही यह भारत,
और आदर्श बने तुम्हारे कर्म,
इस देश की भावी पीढ़ी के लिए।
तुम चाहे किसी से भी प्रेम करो,
लेकिन किसी के प्रति तुम्हारे अंतःकरण में,
नहीं हो द्वेष- नफरत-भेदभाव की भावना,
और नहीं झुके कभी भी विश्व में,
हिंदुस्तान का यह मस्तक- ध्वज।
मैं तुमसे यह नहीं पूछुंगा कि——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)