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27 Jan 2024 · 1 min read

मैं ढूंढता हूं जिसे

मैं ढूंढता हूं जिसे ,वो जहां नहीं मिलता।
कभी ज़मीन , कभी आसमां नहीं मिलता।

तमाम उम्र ही रौंदता रहा , जो मेरे ख्वाब
बिछड़ा, तो उस जैसा मेहरबां नहीं मिलता ।

किसी ग़ैर से ही चलो बात करें हम दिल की,
बहुत ढूंढा मगर वो , हमनवां नहीं मिलता।

भटकते फिरते हैं बेचैन, बेकरार से हम
सुकूं मिल जाये ,ऐसा आस्तां नहीं मिलता।

इतने ग़म देकर भी , दर्द का एहसास नहीं
जहां में खुदा जैसा , पशेमां नहीं मिलता।

जो ठहर ही गया है ,आकर मेरे आंखों में
इन अश्क जैसा कोई ,मेहमां नहीं मिलता।

ग़र तू मिल जाये तो मिले, जमीं पर जन्नत
ख़ुदा जैसा कभी कोई इंसां नहीं मिलता।

सुरिंदर कौर

Language: Hindi
44 Views
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