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21 Nov 2021 · 1 min read

मैं ज्वालामुखी सी हूँ…

ज्वालामुखी की परिभाषा हम स्कूल में पढ़ते हैं
जानते हैं ये बस पत्थरों से फूटते हैं ,

दुनिया भ्रमण पर उसको देखने जाती है
इंसान के अंदर का ज्वालामुखी नही देख पाती है ,

मैं भी ज्वालामुखी की तरह अंदर से खौलती हूँ
हर एक – एक शब्द को मन में समेटती हूँ ,

बाहर से जो मैं पाषाण सी दिखती हूँ
भीतर गर्म लावा ठंडे से सहेजती हूँ ,

अंदर का लावा सालों से धधक रहा है
उसका दर्द सीने में कसक रहा है ,

अगर लावा गिरा तो सह नही सह पायेगें
आग बुझाते बुझाते बेहाल हो जायेगें ,

बहुत सहा अब ये मन और ना सहा पायेगा
और सहा तो ये सच में फट जायेगा ,

लेकिन इसके फटने से मैं शीतल हो जाऊँगीं
फिर मैं ज्वालामुखी को सार्थक कर पाऊँगीं ।

नोट : कुछ ज्वालामुखी दुबारा भी फटते हैं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममा सिंह देवा , 09/06/2021 )

Language: Hindi
306 Views
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