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9 Sep 2021 · 1 min read

मैं जुगनू हूँ

मैं एक छोटा तुच्छ अकिंचन,
देखूँ मुझसे क्या हो पायेगा?

मैं जुगनू हूँ मुझे चाँद, नहीं
समझा जाए तो अच्छा है।
हमसे सूरज का कोई भी ,
एहसान नहीं लिया जाएगा।

मुझे अपने उजाले से ही,
मिटाना है इस अंधेरे को।
एहसानों के बोझ तले तो,
हमसे ना जिया जायेगा।

वो जो रोशनी का समंदर ,
ले निकलते हैं सुबह को।
शाम तक उनका गुरुर भी,
उनको ही खा जाएगा।

शहर की आखिरी गली को,
रौशन कर दूं तो बहुत है।
बस इतने से ही मेरा,
जनम सफल जाएगा।

मैं जानता हूँ वक्त तो लगेगा,
मगर देखना एक दिन।
ये काला गहरा अंधेरा भी,
मुझमें ही समा जाएगा।

Language: Hindi
1 Like · 271 Views
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