मैं जीना सकूंगा कभी उनके बिन
मैं जीना सकूंगा कभी उनके बिन
उन्हे महसूस करता हूं में रात दिन
मेरा दिल यूं धड़कता है उनके लिए
वो मेरी सांस है में नही उनके बिन
मुझसे नजरे मिलाती नही आजकल
दिल को मेरे सताती नही आजकल
रूठकर मुझसे खुद ही तड़पती है वो
अपने आंसू छुपाने लगी आजकल
बीते _लम्हों को यूं _याद करता हूं में
चांदनी रात में जीता _मरता हूं मैं
चाहता __मैं उसे _पागलों की तरह
खुद से ज्यादा उसे प्रेम करता हूं मैं
✍️कृष्णकांत गुर्जर धनौरा