मैं घर का मेंन दरवाजा हूं।
मैं घर का मेन दरवाजा हूं
हो गया हूं लम्बी उम्र का
फिरभी रंग-पेंट से ताजा हूं।
मुझे बनाने के लिए पहले
मोटे दरख़्त को काटा गया
चीर काल तक उसे सुखाकर
चौखट लायक बनाया गया।
कब्जा-कील-किवाड ठोक कर
मेन जगह मुझे लगाया गया।
शुभ मुहूर्त का छानबीन कर
पूजा पाठ करवाया लोगों ने
वंदनवार चंदन टीका मुझे लगाकर
घर के अंदर तब आया लोगों ने।
कभी कभी लोग कुछ ऐसे आते
ठोकर मार मुझे खुद गिर जाते
अपनी चोट से फर्क न पडता
पर देखकर उनकी चोट को
मन काफी व्यथित हो जाता
अपना क्या?सह जाता हूं दर्द को
घर के बड़े बुजुर्ग सह जाते।
गांव जबार की बात है अलहदा
मौज मस्ती में रहते हैं लोग सदा
जंजीर, किल्ली लगा बरेठा
सो जाते हैं गुडाकेश के जैसा
तब चोर लुटेरों से रक्षा को
सीना तान मैं पहरा करता
घुस न जाए कोई अनाधिकृत
इसका ख्याल मैं सदा ही रखता ।
भिन्न भिन्न दिशा से लोग सब आते
घंटी बजा-बजाकर थक जब जाते
फिर भी किवाड़ खुलवा नहीं पाते
ग़ुस्सा खीज से आतुर होकर
पीटने लगते कुंडी से कीवाड को
जैसे कोई बैंड बाजा बजाता।
घर का कोई जब सदस्य बहकता
मेरा दिल तब खूब धड़कता
होता यदि कोई बांट-बंटवारा
दिल मेरा दहल है जाता
वर्षों की संचित घर का मर्यादा
छिन्न-भिन्न होते देख न पाता
एक गेट के बदले में जब
अनेक गेट घर में लग जाता।