” मैं गणित हूं ! ”
शून्य से शुरू अनंत तक भी खत्म नहीं ,
चलती – फिरती हिसाब – किताब की छड़ी हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
जोड़ती अंकों को ,
घटा से बड़ी हूं ,
और भाग से कटी हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
आर्य से रामा के ,
परीक्षण की उत्पत्ति हूं ,
गृहविज्ञान से भौतिक विज्ञान तक
जुड़ी हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
डिग्री से रेडियन तक ,
सेल्सियस से फारेनहाइट तक ,
केल्विन से मेरिडियन तक ,
सबसे खेलती हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
गोरस से हीरोन तक चली हूं ,
ऑयलर सूत्र से यूक्लिड की ज्यामिति हूं ,
त्रिकोण से उलझ कर क्षेत्रमिति में लगी हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
पृथ्वी से चांद की दूरी तक ,
सूर्य से ग्रहों की समीपता तक ,
गुणसूत्रों से हड्डियों की गिनती तक ,
सब संभव कर देती हूं ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
मापन क्रिया ना मेरी बीना संभव ,
इसलिए मैं सबकी सज्जन ।
लाख बच लो मुझसे तुम ,
मेरे बिना ना गणना संभव ।
क्योंकि मैं गणित हूं !
ज्योति
नई दिल्ली