मैं खुदा को खोज रहा हूं !
मैं खुदा को खोज रहा हूं,
मन ही मन ये सोच रहा हूं।
बना कर दुनिया को खुदा,
आखिर कहां चला गया।
इसी उधेड़बुन से परेशान होकर,
मैं मंदिर मंदिर भटक रहा हूं की,
जो कभी वो मिल जाए कहीं तो,
मैं उससे पूछूंगा उसका पता ।
पूछूंगा की फरियाद लोगों की,
उस तक क्यों नहीं पहुंचती।
पूछूंगा की तकलीफ लोगों की,
समय पर दूर क्यों नहीं होती।
क्यों कहते हैं लोग की,
उसके घर देर है अंधेर नहीं।
देर भला उसके घर क्यों है,
जब वो कर सकता सब सही।
पूछूंगा की गर वो गरीबों के साथ है,
तो क्यों इतने बुरे उनके हालात हैं।
क्यों छोटे बच्चे भीख मांग रहे,
क्यों सड़कों की खाक छान रहे।
सुना था की कर्म का फल मिलता है
जैसा कर्म वैसा ही फूल खिलता है।
फिर क्यों चोर उचक्के साहुकार हुए,
ईमान वाले सब बेबस लाचार हुए।
लोग कहते हैं कि वो परीक्षा लेता है,
लेकिन मैंने तो आवेदन नहीं दिया।
न ही मेरी उत्तीर्ण होने की इच्छा है,
फिर क्यों वो सवाल परोस देता है।
मस्जिद और गुरुद्वारे भी घूम आया,
कहीं भी उसका पता नहीं पाया।
अपने सवालों की पोटली उठाए,
मैं मजारों के चक्कर लगा रहा हूं।
मन ही मन कुछ सोच रहा हूं,
मैं खुदा को खोज रहा हूं।