मैं ख़ुश्बू हूँ बिखरना चाहता हूँ
तू जाने है के मरना चाहता हूँ?
मैं ख़ुश्बू हूँ बिखरना चाहता हूँ।।
अगर है इश्क़ आतिश से गुज़रना,
तो आतिश से गुज़रना चाहता हूँ।
न सह पाता हूँ ताबानी-ए-रुख़, पर
तेरा दीदार करना चाहता हूँ।
सरो सामान और अपना आईना दे!
मैं भी बनना सँवरना चाहता हूँ।
शराबे लब से मुँह मोड़ूं तो कैसे?
न मै पीना वगरना चाहता हूँ।
ऐ ग़ाफ़िल तेरा जादू बोले सर चढ़,
तेरे दिल में उतरना चाहता हूँ।।
-‘ग़ाफ़िल’