Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Jun 2021 · 2 min read

“मैं क्षमता हूॅं”

“मैं क्षमता हूॅं”
???

मैं हूॅं, अपने देश,
नही कोई मुझमें द्वेष,
मैं एक सेवक हूॅं,
मैं ही खेवक हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”।

मुझमें ना लोभ है,
ना है, कोई लालच;
ना कोई है, आलस;
मैं हूॅं, एक कार्यपालक।
“मैं क्षमता हूॅं”।

मेरी अपनी है,नसीब;
ना, मैं अमीर हूॅं;
ना मैं हूॅं, गरीब;
फिर भी सबके हूं,करीब।
“मैं क्षमता हूॅं”।

मैं ही शिक्षक हूॅं,
मैं एक संरक्षक हूॅं,
मुझमें है, सबका विश्वास,
मैं हूॅं, सबका आस।
“मैं क्षमता हूॅं”।

मैं एक चरित्र हूॅं,
मैं ही मित्र हूॅं,
मैं ही इत्र हूॅं,
मैं बहुत पवित्र हूॅं।
“मै क्षमता हूॅं”

मैं एक पिता हूँ,
मैं ही ममता भी हूॅं,
मैं भाई भी हूॅं,
सबका मैं दवाई भी हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं निर्दयी हूॅं, मैं दयावान भी हूॅं,
मैं मुरख और विद्वान भी हूॅं,
मैं सुस्त और चंचल भी हूॅं,
मैं गांव और अंचल भी हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं एक संस्कार हूॅं,
मैं ही प्यार हूॅं,
मैं ही अत्याचार हूॅं,
मैं ही पर्व-त्योहार हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं बुरा हूॅं,
मैं अच्छा भी हूॅं,
मैं झूठा,और;
मैं ही सच्चा भी हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं अनाड़ी हूॅं,
मैं ही खिलाड़ी हूॅं,
मैं एक खुली ‘किताब’ हूॅं,
मैं बंद ‘किबाड़ी’ हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं मोह माया हूॅं,
फिर भी एक काया हूॅं,
मैं कुछ कर्म करने,
इस जगत में आया हूॅं,
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं खुद एक प्रकार हूॅं,
मैं न्याय हूॅं, मैं ललकार हूॅं;
मैं नियंता हूॅं, मैं ‘अभियंता’ हूॅं,;
मैं एक कर्मकार हूॅं,
मैं नाई, बढ़ई और कुम्हार हूॅं,
मैं ही सरकार हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं मालिक हूॅं,
मैं नौकर भी हूॅं,
मैं मजदूर हूॅं,
मैं मजबूर भी हूॅं,
और मगरूर भी हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं ही वक्ता हूॅं,
मैं एक ‘प्रवक्ता’ हूॅं,
मैं ही ‘अधिवक्ता’ हूॅं,
मैं सब कर सकता हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं ही करण हूॅं,
मैं कर्म हूॅं,
मैं ही कर्ता और,
मैं ही संबोधन हूॅं,
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं संप्रदान ,आपादान हूॅं;
मैं हर चीज़ का निदान हूॅं,
मैं ही अधिकरण; और,
हर संबंध हूॅं,
मैं खुद एक ‘निबंध’ हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

मैं संज्ञा हूॅं,
मैं ही सर्वनाम हूॅं,
मैं विशेषण और क्रिया हूॅं,
मैं एक निराकरण हूॅं,
मैं ही ‘व्याकरण’ हूॅं।
“मैं क्षमता हूॅं”

आखिर, मैं एक कवि हूॅं,,,
हां, मैं ही क्षमता हूॅं…………

स्वरचित सह मौलिक
……….✍️पंकज कर्ण
कटिहार,
२४/६/२०२१

Language: Hindi
12 Likes · 9 Comments · 1326 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from पंकज कुमार कर्ण
View all
You may also like:
Struggle to conserve natural resources
Struggle to conserve natural resources
Desert fellow Rakesh
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तलाशता हूँ उस
तलाशता हूँ उस "प्रणय यात्रा" के निशाँ
Atul "Krishn"
बाल कविता: मोटर कार
बाल कविता: मोटर कार
Rajesh Kumar Arjun
गौतम बुद्ध रूप में इंसान ।
गौतम बुद्ध रूप में इंसान ।
Buddha Prakash
वंदनीय हैं मात-पिता, बतलाते श्री गणेश जी (भक्ति गीतिका)
वंदनीय हैं मात-पिता, बतलाते श्री गणेश जी (भक्ति गीतिका)
Ravi Prakash
दोहे ( मजदूर दिवस )
दोहे ( मजदूर दिवस )
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
ग्वालियर की बात
ग्वालियर की बात
पूर्वार्थ
* मुक्तक *
* मुक्तक *
surenderpal vaidya
बिखरने की सौ बातें होंगी,
बिखरने की सौ बातें होंगी,
Vishal babu (vishu)
नीलामी हो गई अब इश्क़ के बाज़ार में मेरी ।
नीलामी हो गई अब इश्क़ के बाज़ार में मेरी ।
Phool gufran
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
Dr Archana Gupta
किसी से उम्मीद
किसी से उम्मीद
Dr fauzia Naseem shad
" एकता "
DrLakshman Jha Parimal
ग़ज़ल/नज़्म - वो ही वैलेंटाइन डे था
ग़ज़ल/नज़्म - वो ही वैलेंटाइन डे था
अनिल कुमार
मनुष्य
मनुष्य
Sanjay ' शून्य'
#सामयिक_आलेख
#सामयिक_आलेख
*Author प्रणय प्रभात*
कुछ लोग गुलाब की तरह होते हैं।
कुछ लोग गुलाब की तरह होते हैं।
Srishty Bansal
जिंदगी एक चादर है
जिंदगी एक चादर है
Ram Krishan Rastogi
आप सुनो तो तान छेड़ दूं
आप सुनो तो तान छेड़ दूं
Suryakant Dwivedi
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
2584.पूर्णिका
2584.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
मनमुटाव अच्छा नहीं,
मनमुटाव अच्छा नहीं,
sushil sarna
हमारे बाद भी चलती रहेगी बहारें
हमारे बाद भी चलती रहेगी बहारें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
"हँसिया"
Dr. Kishan tandon kranti
अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
अधरों पर शतदल खिले, रुख़ पर खिले गुलाब।
डॉ.सीमा अग्रवाल
अपने
अपने
Shyam Sundar Subramanian
*जिंदगी के  हाथो वफ़ा मजबूर हुई*
*जिंदगी के हाथो वफ़ा मजबूर हुई*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मेरे राम
मेरे राम
Prakash Chandra
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
मैं हूँ के मैं अब खुद अपने ही दस्तरस में नहीं हूँ
'अशांत' शेखर
Loading...