मैं क्या हूँ….
मैं क्या हूँ,
क्या मेरा अस्तित्व है,
क़भी रूप विरक्त (त्यागी) जैसा
क़भी नरभक्षी जैसा मानव ।
देखता हूँ क़भी बच्चे,
मेरा वात्सल्य,
उमड़ता है,
वहीं जब देखता हूँ,
मैं इक लड़की,
दैत्य बन,
मन मचलता है ।…..मैं क्या हूँ….
क़भी है अहसास,
ज़िम्मेदारी का,
हूँ क़भी बेपरवाह,
ये असर है
क्या जवानी का ।
हूँ मैं क़भी,
एक भोला से चेहरा,
क़भी हूँ सताया,
वक़्त का मारा,
आजकल मैं परेशां हूँ,
जैसे हो कोई,
बेरोजगार बेचारा ।….मैं क्या हूँ…
ख़ुद की पहचान,
बना लुँगा,
वक़्त से किया है,
मैंने वायदा,
फ़िर न जाने क्यूँ,
उलझ गया हूँ,
वक़्त को सुलझाने मैं,
जिसका न मिला,
मुझे कोई फ़ायदा ।…मैं क्या हूँ…
आज मैं,
हो गया हूँ हैरान,
किसी को है नहीं परवाह,
कई कारण हैं इसके,
मेरे शरीर में दम नहीं,
या फ़िर ये,
हो गया है तबाह ।…मैं क्या हूँ…