“मैं कौन हूँ”
“मैं कौन हूँ”
दे के मुझे कई उपनाम,
कभी दिखा के दिखावटी सम्मान,
कभी कर के अपमान,
कभी बहला-फुसला कर,
कभी डरा-धमका कर,
भर दिया मेरे मस्तिष्क मेें,
मैं ममता हूँ, मैं क्षमता हूँ,
मैं दक्षता हूँ, मैं निरक्षरता हूँ,
इन सब बातों का ऐसा हुआ प्रभाव,
की हँस कर सह लेती हूँ हर अभाव,
दोष इसमें नहीं मेरा कोई,
सदियों से यही रहा है नारी का स्वभाव,
दे कर मुझे कई विशेषण,
थोप कर सारी प्रतिबन्धता,
कर दिया मुझे इतना सीमित,
की स्वयं से ही पुछ्ता मन,
मैं कौन हूँ, क्या है मेरी विशेषता,
सत्य तो यही है, है यही वास्तविकता,
हाँ मैं नारी हूँ, पर हूँ तो एक इंसान,
मेरी भी है इच्छा ,हैं मुझमें कई गुण,
यदि,सभी बदले अपनी मानसिकता,
तब ही दूर होगी स्त्री-पुरुष में विषमता।।
स्वरचित एवं मौलिक,
कीर्ति