मैं कश्मीरी पंडित था
गैरों से था डर नहीं मुझको,
पर अपनों से आतंकित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।
ईद,दिवाली,होली,मुहर्रम
त्योहार सभी तो अपने थे
स्वर्ग से सुंदर धरा थी अपनी
और आंखों में कुछ सपने थे
न जाने क्या हुआ अचानक
वक्त ने कैसी करवट खाई थी
हथियार लिए खड़े थे सम्मुख
वो जो कल तक मेरे अपने थे
ये सब कुछ ही देख कर मेरा
मन बहुत ही आंतकित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।
हिंदू मुस्लिम भाई भाई
यह नारें कितने अच्छे थे
हमने भी सुन रखा था
जब से छोटे बच्चे थे
देश बंटा था,हम न बंटे थे
फूलों की घाटी अपनी थी
झेलम की लहरें सींचा करती
वह सुगंधित माटी अपनी थी
फिर किया विसर्जन मेरा ऐसे
जैसे मैं ही खंडित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।
आने वाले कल की न थी चिंता
बीता कल भी अच्छा था
पर कैसी कटेगी रात आज की
बस सोच यहीं मन शंकित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।
सुना है बुद्धिजीवी कुछ जगे थे
अफ़ज़ल की फांसी को सुनकर
आधी रात को कोर्ट खुली थी
मेनन की फांसी को लेकर
कसाब, गुरु और मेनन
यह सब तो निर्दोष रहे
न्याय मिला न हमको अबतक
क्योंकि हम खामोश रहे
हथियार उठा हम भी सकते थे
पर मानवता को लेकर चिंतित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।
उन्होंने अस्मत लूटी,घर था लूटा
मेरा गांव,शहर था छूटा
अपने घर से ही बेघर हो
भटक रहा मैं अंदर से टूटा
शिकायत उनसे फिर भी कम थी
आंखें मेरी इसलिए नम थी
सिस्टम चुप था,नेता चुप थे
और देख रवैया सरकार का
मैं तो बहुत अचंभित था
मैं भी हूं इसी देश का वासी,
मैं कश्मीरी पंडित था
मैं कश्मीरी पंडित था।।