मैं कवि कैसे बना? / Musafir Baitha
मैं कवि कैसे बना?
एक कविता से सन 2001 में ‘हिन्दुस्तान’ (पटना) में मुलाकात हुई. सहज लगा, लगा सरल है कविता लिखना. लिख दे आया अपनी दफ्तर से जा हिन्दुस्तान दफ्तर जो दो किलोमीटर से कम दूरी पर ही है.
कमाल हुआ! कविता छप गयी, बेहद शानदार रूपाकार में. यह मेरी पहली लिखी-छपी कविता थी, गर बालकाल में लिखी-छपी अपनी बाल कविताओं को छोड़ दूँ तो.
‘मेरे हाथ पाँव सही-सलामत हैं’ शीर्षक कविता को पढकर मैंने ‘ मेरी देह बीमार मानस का गेह है’ शीर्षक कविता लिखी थी. ‘मेरे हाथ पाँव सही-सलामत हैं’ के छपने के १४ वें दिन उसी अखबार के पन्ने पर मेरी भी यह कविता छपी….
अपनी इसी कविता के शीर्षक के कतरब्योंत से मैंने अपने संग्रह का शीर्षक रखा था- बीमार मानस का गेह.