मैं कविता लिखना सीख रहा हूँ
मैं कविता लिखना सीख रहा हूँ।
मैं सीख रहा हूँ
कैसी कविता लिखनी है मुझे?
मैं सीख रहा हूँ
जिससे नाम हो
बड़े कवियों में मेरा।
कोई पुरुष्कार मुझे भी मिले
राज्य कवि या राष्ट्र कवि का दर्जा भी मिले
मैं ऐसी कविता लिखना सीख रहा हूँ।
सरकार विरोधी क्यों लिखूं?
क्यों लिखूं मैं कमेरों के लिए?
अमीरों के लिए ही तो लिखूं
ताकि मैं भी अमीर बनूं
पूंजीवाद की भाषा बोलूं
पूंजीवाद फलेगा तो फायदा मुझे भी तो होगा
इंजिनियरों की तरह पैकेज कवियों को भी तो मिलेगा।
मजदूर तो खुद भूख मरते हैं
क्या देंगे वो मुझे
केवल भूख
उनकी भूख में मैं क्यों भूख मरूं
जब मैं ऐसा लिखता हूँ तो सोचता हूँ
आखिर क्यों लिखता हूँ मैं ऐसा?
ये सोचकर संदेह होता है
मझे खुद पर
कि ये मैं अपनी नहीं
किसी ओर की कविता
अपनी कलम से लिख रहा हूँ।