मैं कविता नहीं लिखती
मैं कविता नहीं लिखती
ये तो कुछ और है
गहरे दरिया का छोर है
अपने भीतर के दावानल को मिटाने के लिए
चीखती खामोशियों का शोर है
मैं कविता नहीं लिखती,
ये तो कुछ और है
ये शब्द जो इतरा रहे है पन्नों पर
ये शब्द भी मेरे नहीं हैं
जाने किस- किस की भावनाओ के भार है
जो मैंने उधार लिए है
ओर यहां उतार दिए है
मैं कविता नहीं लिखती
ये तो बस एक सुगबुगाहट है
किसी की छटपटाती ख्वाहिशों की
जो एक फांस सी गड़ी पड़ी थी
कल मेरे सिरहाने रात खड़ी थी
बस उसी की भोर हैं
मैं कविता नहीं लिखती
ये तो कुछ ओर है
ना डूब पाओगे तुम इसमें
ना ही रस ले पाओगे
ये नीरस है
क्यूंकि इसमें तुम ना मिलोगे
बस मैं ही मैं हूं
ओर मैं कविता नहीं लिखती!!
©
प्रिया मैथिल