“” मैं और मेरी पायल””
मैं,
और मेरी पायल,
अक्सर,
एक बात कहा करते है,
कि,
शायद,
तुम न मिलते,
तो ,मैं कभी,
पायल का दिया, अहसास,
तुम संग बिताया, मधुमास,
इन सबसे रह जाती,
अनजान।।
ये पायल, ये पैजनियाँ,
ये हमारे प्यार का…
द्वारा तुम्हारे,
दिया गया पहला उपहार,
जाने क्यूँ ?आज भी ….
मन को उतना ही,
बेचैन कर देता है।
जितना, अतीत में…..,
कुछ अनकही बातें…
तुम रखकर हाथों में हाथ मेरे,
समझ जाते थे।
मन, बेचैन होता था तब,
और होता है अब….।।
ये पायल की झनकार,
जब-जब मेरे कानों में गूँजती है,
लगता है मानो..
तुमने कुछ कहा ……
अभी कहा, यहीं कहा,
जबकि,
मैं जानती हूँ,
तुम मेरा अतीत हो ,
छोड़ा हुआ संगीत हो,
बिछड़े हुए मनमीत हो,
मगर…..,
जब भी……..…,
ये पायल की झनकार,
करती है..छन-छन-छन…
खिंच जाते है, मन के तार,
बज उठते है, दिल के सितार,
छेड़ जाते है, तराने, वो पुराने,
जो मिलकर हमने गाए थे साथ,
लेकर हाथों में हाथ।
तुम नहीं हो,
है तुम्हारी याद……..,
और ये पायल, मेरे पाँव में ,
तुम्हारे हर गीत के साथ।।
संतोष बरमैया”जय”
कुरई, सिवनी,म.प्र.