मैं और मेरी तन्हाई
मैं हसा बहुत और रो भी गया,
मैं तृप्त हुआ और तर भी गया।
मैं समा गया और खो भी गया,
मैं जीया तुझे और मर भी गया।।
मैं समय तेरा अब रहा नही,
मैं सपना तेरा अब रहा नही।
मैं हमदर्द तेरा अब रहा नही,
मैं हमराज तेरा अब रहा नही।।
मैं मूर्ख हूँ तू पहचान गई,
मैं मुफ्त मिला तू मान गई।
मैं बेकार ही हूँ तू भान गई,
मैं अनमोल नही तू जान गई।।
मैं जैसा भी हूँ तेरा हूँ,
मैं उम्मीदो का फेरा हूँ।
मैं कैसा भी हूँ सवेरा हूँ,
मैं आशाओ का चहरा हूँ।।
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“ललकार भारद्वाज”