मैं और मेरा चाँद
मैं और मेरा चाँद
अक्सर अँधेरी रातों में
चाय की प्यालियों में डूबकर
जागा करते हैं रात भर
कभी तोड़ते हैं खुशियों का गुल्लक
बाँट लेते हैं खुशियाँ आधी-आधी
और अश्क़ों की बारिश में कभी
भिगो देते हैं गम के तकियों को
हँसते हैं, गाते हैं और गुनगुनाते हैं
और कभी-कभी शरमाते भी हैं
बिता देते हैं हम सारी रात
यूँ ही एक दूजे की बातों में
दुश्मन बनकर सुबह की किरणें
कर देती है हम दोनों को जुदा
फिर रात मिलन का वादा लेकर
मेरा चाँद छुप जाता है कहीं बादलों में
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
भोपाल