मैं ऐसी ही हूँ
वो और हैं जो आदतें बदल रहे हैं
मेरे क़दम तो सालों से इसी रास्ते पर चल रहे हैं ,
मेरा ” मैं ” में नही परिवार में वास है
एकांत ही मेरा निवास है ,
गीता – रामायण सब पढ़ती हूँ
तभी तो प्रभु राम और श्री कृष्ण पर रचती हूँ ,
कला अंदर बसी है
इसी की तो ख़ुशी है ,
दीवारें मेरी सखी और राज़दार हैं
हुनर का मेरा पहलू कुछ ज्यादा ही दमदार है ,
तूफ़ान से डरना तो मुझे आता नही
सर झुकाकर परिस्थितियों से भागना मुझे भाता नही ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 18/05/2020 )