मैं एक जलपरी
मैं एक जलपरी
तुझ पर आज एक कविता लिखनी है,
ये कहा मान्यवर वालिया जी ने क्या लिख पाऊँगी
मैं तुझ पर कविता बाँध पाऊँगी तुझको शब्दो के जाल में
मैं पानी के रिश्ते में उलझ गई उनकी ही धार में बस चली
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…
दुख यदि होता मुझको तो समझ न पाए समुद्र भी कभी
मेरे आंसुओ का कोई मोल नही जो मिलते हैं
खारे पानी मे कीमत वहाँ उसकी कोई नही
पर फिर भी बसेरा मेरा वही बस बसेरा मेरा वही
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…
आज मैं तुम्हे लिख रही हूँ जो भी सुना वही
न जाने क्या क्या राज छिपे सीने में तेरे
तेरी ज़िन्दगी के सारे ख़्वाब लिखना चाहती हूँ
सदियों से आंसू बहाये उसको उजागर करना चाहती हूँ
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…
सागर से भी है नमकीन आसमाँ से दिखती होगी तू
वही से अपनी दुनिया सजाती होगी तू
कोई जलपरी या है कुदरत की जादूगरी कोई तू
कभी तू दिखे, कभी तू छिपे कल्पना की सी उड़ान सी तू
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…
मैं लिखूंगी उन्मुखय तुम पर स्वरूप में आओ सामने
सच मे बोलो तुम को हो इस रूप में ही क्यो हो ऐसे
तुम जलपरी या हो कुदरत की जादूगरी
कभी तू दिखे, कभी तू छिप जाए क्यो ऐसा करती हो
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…
सच बताओ कल्पना हो या स्वरूप में हो कोई
आओ करे दोस्ती हम दोनो दुनिया की बातों से दूर
तुम हकीकत बताओ लिखूं मैं तुम पर कोई गीत
आओ दोनो मिलकर बनाये एक अनोखी रीत
हे मानव मैं एक जल परी,एक जल परी…