मैं उड़ता रहूँगा, उठता रहूँगा
इतिहास के पन्नों में लिख दो
या अपने झूठे सच्चे शब्दों से
मेरे चेहरे पर कीचड़ मल दो
मैं उड़ता रहूँगा, उठता रहूँगा
उस धूल, उस धुंए की तरह
क्यों मेरी चमक से नाराज़ हो
क्या मेरी तरक्की से उदास हो
मैं यूँ ही बढ़ता रहूँगा
जैसे कि ये जहां मेरा घर हो
सूरज और चाँद की तरह
समंदर की लहरों की तरह
उम्मीद की किरण की तरह
मैं बढ़ता घटता रहूँगा
बिखरा हुआ देखना चाहते हो मुझे
या सर और नज़रें झुकाये हुए
आँखों से आंसूं बहते हुए
या कमज़ोरी से कहराते हुए
क्या मेरी हंसी से नासाज़ हो
या मेरी खुशियों से नाराज़ हो
मैं यूँ ही हँसता रहूँगा
जैसे कि मैं सबसे खुश हूँ
अपने शब्दों से मुझे घायल करो
अपनी नज़रों से मुझे छलनी करो
अपनी नफरत से मेरी जान लो
मैं उड़ता रहूँगा, उठता रहूँगा
ठण्डी सुहानी हवा की तरह
शर्म परे रखकर, निखरता रहूँगा
दर्द किनारे कर, हँसता रहूँगा
डर की रातों से दूर होकर
भोर के उजाले की ओर बढ़ता रहूँगा
उम्मीदों का दामन थामे, सपने साथ लिए
मैं नयी मंज़िलों की तरफ चलता रहूँगा
मैं उड़ता रहूँगा, उठता रहूँगा
–प्रतीक