मैं उदास होना चाहती हूं
मैं उदास होना चाहती हूं
उदास होना चाहती हूं।
कुछ पल रोना चाहती हूं।
थक चुकी हूं मुस्कान लपेटे
ग़म को भी अंदर समेटे,
अब पलकें भिगोना चाहती हूं
हां,कुछ पल रोना चाहती हूं।
तन्हाईयां ऊब गई मुझसे,
रानाईयां रूठ गई मुझ से,
कभी पाऊं खुद को तन्हा
बस ऐसे खोना चाहती हूं।
हां,कुछ पल रोना चाहती हूं।
बंदिश न हो आंसू रोकने की
जहमत न करें कोई टोकने की
धुल जाते मेरा अंतर्मन
ऐसे खुद को धोना चाहती हूं।
हां ,कुछ पल रोना चाहती हूं।
क्यों औरत को इतनी बंदिशें
ज़माने भर को उससे रंजिशें
तुम्हारे लिए मैं हर पल हसी
खुद को डुबोना चाहती हूं।
हां कुछ पल रोना चाहती हूं
सुरिंदर कौर