मैं इन्सान हूं, इन्सान ही रहने दो।
मैं इन्सान हूं,
इन्सान ही रहने दो,
मुझे मशीन मत बनाओ।
उत्पादन की ललक,
पैसों की खनक के लिए,
मुझे 12-14-16 घंटे काम मत कराओ।
मैं इन्सान हूं . . . . . .
सुबह से रात काम करते करते,
थक कर मैं चूर हो जाता हूं।
सारी दुनिया को तो छोड़ ही दो,
अपने परिवार से ही दूर हो जाता हूं।
विकास की अंधी दौड़,
और मशीनीकरण के दौर में,
मुझे रोबोट मत बनाओ।
मैं मजदूर हूं,
मजदूर ही रहने दो,
मुझे मजबूर मत बनाओ।
मैं इन्सान हूं . . . . . .
मैं ऐसे कितने दिन काम कर पाऊंगा,
समय से पहले ही मैं बुढ़ा हो जाऊंगा।
ताकत और नजर से भी,
कमजोर हो जाऊंगा,
धूल धुआं गैस प्रदुषण से,
बीमार हो जाऊंगा।
काम का बढ़ता बोझ,
और नई औद्योगिक सोच में,
मुझे औद्योगिक गुलाम मत बनाओ।
मैं स्वस्थ हूं,
स्वस्थ ही रहने दो,
मुझे बीमार मत बनाओ।
मैं इन्सान हूं . . . . . .
मैं अपने वजूद से ही दूर हो गया हूं,
काम की वजह से मजबूर हो गया हूं।
मेरी सोच की तरह मैं भी खत्म हो गया हूं,
मुझे लगता है कि मैं मशीन हो गया हूं।प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता
कम लागत में उत्पादकता
हमें डराकर डरपोक मत बनाओ
मैं लड़ाकू हूं,
लड़ाकू ही रहने दो,
मुझे कायर मत बनाओ।
मैं इन्सान हूं। . . . . . .