मैं इंकलाब यहाँ पर ला दूँगा
भ्रष्ट नेताओं,भ्रष्टाचारी लोगों
और भ्रष्ट पूँजीपतियों द्वारा गरीबों पर,
किये गए शोषण से संग्राम का,
मैं तांडव मचाने आया हूँ ।
खाली हाथ नहीं आया मैं,
साथ कफन भी लाया हूँ ।।
पवन तो आकर थम चुका,
अब सुनामी आने वाला है ।
सब्र का बाँध अब टुट चुका,
जनसैलाब उमड़ने वाला है ।।
दिल दहलाने वाला मंजर,
मैं खड़ा यहाँ पर कर दूँगा ।
समय की सीमा समाप्त हुई,
मैं इंकलाब यहाँ पर ला दूँगा ।।
वक्त यहाँ अब बचा नहीं,
किसी के साथ संवादों का ।
यहाँ आर पार की लड़ाई होनी है,
गरीबी अमीरी के विवादों का ।।
मेरा शब्द-वाण सब विफल रहा,
यहाँ इन दुष्टों को समझाने का ।
यह समय है अब त्रिशूल उठाकर,
उनकी छाती पर चढ़ जाने का ।।
इस लड़ाई में ये प्रण है मेरा,
या तो मैं मर जाऊँगा ।
चाहे इस देश से हमेशा के लिए,
गुलामी मिटा के जाऊँगा ।।
इस लड़ाई से बचना तो अब,
इंसानियत के दुश्मनों को है ।
तुम इस लड़ाई से भागकर यदि,
जो खुद को भ्रष्ट बना लोगे,
तो आने वाली पीढ़ियों को तुम,
क्या जवाब दे पाओगे ।।
तेरा जमीर तुझे धिक्कारेगा,
जो कभी सहनीय नहीं होगा ।
नजर मिलाकर बात किसी से,
तुम कभी न कर पाओगे ।।
जिल्लत भरी जिंदगी में,
तुम पूरी उम्र गुजारोगे ।
इससे तो अच्छा रहेगा,
इस शोषण से आजादी के संग्राम में तुम भी,
मेरा साथ देकर दो चार को मारकर,
खुद हँसकर बलि चढ़ जाओगे ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 15/07/2023
समय – 11 : 56 ( रात्रि )