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14 Nov 2017 · 1 min read

मैं आदमी हूँ ख़ास

मैं आदमी हूँ खास
रोजाना सुबह से शाम तक
निकालता हूँ बाल की खाल
फिर बुनता हूँ मकड़जाल
कोई फसे क़ामयाब हो चाल |

जागने से सोने तक
साथ रखता हूँ छुरी
करता हूँ गंदे काम
कहता हुआ राम राम
पर निकलता है मरा मरा |

न्याय के मंदिर में
चुनाव के समंदर में
स्वयं को हंस कहूँ
एक टांग पर खड़ा
जीतता जिताता रहूँ |

मैं आदमी हूँ खास
साम दाम दण्ड भेद से
जोड़ कर जुगाड़
ला देता हूँ
ऊंट के नीचे पहाड़ |

Language: Hindi
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