“मैं आज़ाद हो गया”
मैं आज़ाद हो गया,
बस्ता था जिसकी निगाहों में कभी,
उसकी निगाहों से मैं आज़ाद हो गया,
कैद में था उसकी झूठी सी मोहब्बत में कभी,
मैं उसकी झूठी सी मोहब्बत से मैं आज़ाद हो गया,
बेमतलब से थे कुछ रिश्ते, हाँ थे उनमें ही कुछ मेरे अपने,
मैं बोझ था या वो बेनाम थे रिश्ते,
मगर उन रिश्तों में छुपे जज़्बात थे मेरे,
उन अपनों से दूर हो गया,
मैं उन रिश्तों से आज़ाद हो गया,
तड़प रहा था किसी की यादों में, मैं दिन-रात,
उन यादों से मैं आज़ाद हो गया,
सहमां सा था मैं पिछले बरस एक सज़ा सी भुगत रहा था,
कहने को तो ज़िंदा था पर अन्दर-अन्दर मर रहा था,
साँसों में साँसें तो थी मगर दम घुट सा रहा था,
दिल के ज़ख्मों के वार से बेबस मैं सज़ा खुद को दे रहा था,
उन सजाओं से मैं आज़ाद हो गया,
खुद को पा कर खुद का हो गया,
आज मैं आज़ाद हो गया।
“लोहित टम्टा”