मैं असफल और नाकाम रहा!
शीर्षक – मैं असफल और नाकाम रहा!
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9001321438
पिं 332027
मैं असफल और नाकाम रहा
गलतियां होती रही सफर में
लेकिन! ये मेरे जीवन का
परिमाप नहीं…!
परिभाषित नहीं चरित्र मेरा।
ओ त्रुटियों! भूल,चूक,गलतियों…!
सदा ही तुमने अपनाकर मुझकों
मानवता का दान दिया
जीवन परिपथ पर भटक जब
सुकर्म पुण्य की महत्ता भूल
चला उड़ाता फिरता धूल।
ओ विराट बेवकूफियों, नादानियों!
थामकर हाथ मेरा सदा तुमने
नित्य ही उपकार किया।
मिट रहा था अस्तित्व मेरा
फिर से आलोकित पथ की ओर धकेला।
पाखंड पथ था पाथेय हमारा
सत पथ जीवन सम्बल से अजान
चल रहे झूठ को अटल मानकर
फिर भी जहाज का पंछी नहीं बना
इतने सारे अपराध हमारे
फिर भी जीवन उपकार हुआ।
सद्भावना एकाकी कर्म ने
सब कुछ था तौल रखा।
मंतव्य न था परपीड़ा
न परजन दुःख आयोजन
अपने में एक सुंदर कर्म का
रहा मात्र आयोजन लक्ष्य।
मौन,मूक इस आयोजन में
विचलन का आना शुभ रहा
बाधक मनोविकार सुसृष्टि में लगे
अपराध भूल चूक गलती,नादानी
सबने अपने पक्ष तुलना में योग दिया
सुंदर पथ के सुकर्म में
सब परीक्षा लेने आते
दे जाते वचन अटल मौन ज्ञान वरदान।