हां ! मैं अपराधी हूं
हां मैं अपराधी हूं!
मैंने तोड़ा है कानून
लिया है हाथ में,
थे चार वो मैं अकेली ।
पथ सुनसान…
बना था पहेली ।
ठीक निशीथ काल,
बंद गाड़ी भयभीत हाल,
गड़गड़ाहट द्रुम-दल
मन हुआ घोर विकल
डरी सहमी मैं चली
सोयी थी हर एक गली
भाग्य भी था सो गया
जिसका डर था वही हो गया
उन चारों ने दबोच लिया
पुनित-दामन नोंच दिया
अबला मैं करती भी क्या?
जीती क्या मरती भी क्या?
नन्हें बच्चों का ध्यान आया
लड़ने का अरमान छाया
नाखूनों से वार किया
छीन चाकू प्रहार किया
फटे दुकुल को रंग लिया
काट शीश था संग लिया
फिर दहाड़ी मैं कोर्ट,थाने
ना थी पहचान..
थे वो अनजाने
कबूल मुझे जुर्म मेरा,
बनुगीं मैं गुलाम नहीं,
शोषण करने वालों सुनो,
मैं ही उत्थान, बर्बादी हूं।
है हर सजा मंजूर मुझे,
हां मैं अपराधी हूं।।
रोहताश वर्मा “मुसाफिर”