मैं अक्सर उसके सामने बैठ कर उसे अपने एहसास बताता था लेकिन ना
मैं अक्सर उसके सामने बैठ कर उसे अपने एहसास बताता था लेकिन ना उसके चेहरे पर मुस्कान और ना ही उसके माथे पर शिकन आती थी…!
कभी कभी सोचता था कि पत्थर से दिल लगाया है , फिर सोचता था कि भगवान भी तो लोगों ने पत्थर से ही बनाया है , जब उस भगवान में इतना आस्था और विश्वास है तो थोड़ी सी उम्मीद इस प्यार से भी लगायी जा सकती है…!
पर मैं भूल गया था कि मैं राम नहीं हूं जो कि इस पत्थर को अपने स्पर्श से अहिल्या बना दूं …!
जज़्बात मेरे सारे मिट्टी हो गये और वो बच्चों की तरह मेरे एहसासों से खेलते रही , न जाने कौन से भ्रम में रहा ये दिल जो हंसते हंसते सारे दर्द झेलता रहा …!