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2 May 2024 · 1 min read

मैं अकूत धन का स्वामी

मैं अकूत धन का स्वामी हूं
मैं हूं विश्व-विजेता
मेरे जैसा अन्य न कोई
मैं युग का नचिकेता

मेरा वार्तालाप प्रकृति के
कण-कण से होता है
जगतपिता मेरे मानस में
पुण्य बीज बोता है

रचे ग्रन्थ पर ग्रन्थ जा रहे
अनुदिन मेरे द्वारा
फैल रहा मेरी सुकीर्ति का
त्रिभुवन में उजियारा

दूर हो गई हर बीमारी
पूर्ण स्वस्थ तन-मन है
शुचिता सदाचार से पूरित
परहित रत जीवन है

ऐसा ही कुछ स्वप्न सवेरे
जब से मैंने देखा
तब से मेरा उर उमगित है
अद्भुत विधि का लेखा

नमन ईश की अनुकम्पा को
नमन सभी मित्रों को
नमन स्वप्न में आए अगणित
मनमोहक चित्रों को

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
1 Like · 38 Views
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