मैंने दी थीं मस्त बहारें
मैंने दी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
जन्नत से धरती सौंपी थी, तुमने मैली कर डाली
मैंने दी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
मैंने बांटी प्रेम फुहारें, तुमने नफरत भर डाली
प्रेम प्रीत की रीत बनाई, तुमने हिंसा फैला दी
मैंने दी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
जल जंगल नदियां बांटी, प्रदूषित तुमने कर डालीं
हरा भरा संसार उजाड़ा, कंक्रीट से भर डालीं
मैंने दी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
मैंने सौंपी ढेर नियामत, तुमने सभी मिटा डालीं
मैंने दी थी ढेर हिदायत, तुमने एक नहीं मानी
मैंने सौंपी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
मैंने दी थी कंचन काया, कालिख उसे लगा डाली
सत्य प्रेम और करुणा दी थी, मन से उल्टी कर डाली
मैंने दी थीं मस्त बहारें, तुमने आग लगा डाली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी