मैंने कहा कुछ भी नहीं
उसने कहा मुश्किल बता
मैंने कहा कुछ भी नहीं”
सोच लेता तू अगर
मन की गति थाम कर
एक चातक देखे नभ को
अंक अंक फिर राम पर
है बहुत मुश्किल भरा
इतना तू बस जान ले
उसने कहा…
सीप से मोती निकले तो
हार वो कंठ का बने
और इक समुंदर है जो
प्यास से तूफान बना
मिलता नहीं किसी को भी
यहां जलधर शिव सा
उसने कहा…
प्राण अपान में तू घिरा
आचमन ले नीर का
कामना लबों पे तेरे
दुख हरण वो चीर सा
द्रौपदी कैसे कहे अब
कलियुग क्या वीर का
उसने कहा, मुश्किल बता
मैने कहा कुछ भी नहीं।।
सूर्यकांत द्विवेदी