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27 Feb 2022 · 1 min read

मैंने अपनी क्यों नहीं सुनी

स्वप्न कांच की भांति टूट जाते हैं ,
इच्छाएं रेत की भांति बिखर जाते हैं ,
एक लम्बा सफ़र बिना किसी आराम
तय होता रहता है ,
कभी इसकी सुनने तो कभी उसकी सुनने में ही
मन खो जाता है ,
अंत में हिस्से में बस राख या मिट्टी ही आती है,
और एक अफ़सोस आता है हिस्से में
इसकी उसकी तो बहुत सुनी
आखिर मैंने अपनी क्यों नहीं सुनी ?

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 308 Views

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