मैं(गाँव) तड़प रहा हूँ पल-पल में
वीभत्स का तू धूप लिया हैं
मानसिकता अगुण रूप लिया हैं
भाई-चारा लूट लिया हैं
धन वैभव मन खोट किया हैं
जाति-पाती के दल-दल में
अनैतिकता के हल-चल में
व्यक्ति विवादित कल-कल में
मैं(गाँव) तड़प रहा हूँ पल-पल में
संभावित परिकोट लगा हैं
स्वाभिमान को चोट लगा हैं
द्रवित पीड़ा हैं हर घर-घर में
द्वेष पनप बैठा नर-नर में
वाक पटु के हर तू छल में
पुण्य,चरित्र सहिष्णुता गला चुके हो
सड़ी मीन सी अविरलता जल में
मैं (गाँव) तड़प रहा हूँ पल-पल में