मेल
चलने के लिए पैर भी काफ़ी रहते है लेकिन मेरी एक गाड़ी उसी तरह पेट्रोल पी रही थी,जिस तरह सरकारें आम इंसान के मेहनत की कमाई को चूस लेती है ,पर एक अंतर था मेरी मोटरसाइकिल पेट्रोल पूरा पीकर रुक जाती है, सरकारें नही रुकती।
बहुत विचार करके, कामों की अधिकता को देखते हुए स्कूटी लेने का विचार बना।
निकल गए जबलपुर शाम ५ बजे की बस से,सीट नंबर १७ खिड़की के पास। जैसे ही बस के अंदर गया मेरी सीट पर एक अंकल पहले से ही बैठे थे, उम्रदराज लग रहे थे सो मैंने उनसे कुछ न कहा,काला शूट और सफेद शर्ट फिर भी मैंने पूछ लिया आप वकील है? पता नही क्यों यह बेतुका सवाल मैने पूछा। मज़े की बात यह है कि उन्होंने कहा हां। बस को निकलने मे समय था, बैठे बैठे चाय पीने का मन हुआ और एक चाय अंकल के लिए भी ले आया। चाय उन्होंने जवानी की तरह पी। चाय के पहले हम दोनो के बीच काफी बात हो चुकी थी, वकालत को लेकर। वकील, न्यायाधीश से लेकर पूरे सामाजिक तंत्र पर बात हो गई। अगर किसी का धंधा पता हो तो बात उसी पर सबसे पहले की जा सकती हैं और मुझे भी उस समय भारतीय न्यायतंत्र कमजोर दिख रहा था। इसी बात के बीच मेरा परिचय और
पेशा वो जान चुके थे।
बस रवाना हुई और वो एक- एक जगह का नाम पूछने लगे,
वकील अंकल का इस सागर शहर से कम रिश्ता था, मैंने भी पीली कोठी,पहलवान बब्बा से लेकर सिविल लाइंस,मकरोनिया सब बताते हुए उनको जबलपुर १८०किमी का बोर्ड भी दिखा दिया जिससे उनको संतुष्टि हो जाए। वो पहली बार इस रोड से जबलपुर जा रहे थे।
लेकिन उनकी जगहों को लेकर उत्सुकता देखने लायक थी।
या फिर वो डरे हुए थे कही गलत दिशा मे बस रवाना तो नही हो गई।
थोड़ा सा मुझ पर भरोसा होते हुए
अचानक से वो बोले मेरे बेंगलुरु में ३ फ्लेट है, जिनकी कीमत करोड़ों मे है, सारे बच्चे वही पर स्थायी निवास करते है,बच्ची एशिया की टॉपर थी अभी एक विदेशी बैंक में काम करती है, दोनों लड़कों की सालाना इनकम ३ करोड़ के आस पास है। कुछ पल के लिए मेरा दिमाग़ मेरे शरीर से अलग सा महसूस हुआ। ये बातें सामान्य नही थी।
अपने दिमाग को शरीर से जोड़ने के लिए मैंने कुछ निजी बातें पूछना शुरू किया,आपकी उम्र क्या है? उन्होंने कहा मैं ८० साल का हो चुका हु। गुणा भाग सही बैठा कर मैने कहा आप तो सन ४३ की पैदाइश है,सामाजिक विज्ञान मे रुचि के कारण ,इतिहास बाजू मे बैठा था फिर क्या आजादी से लेकर आपातकाल और निजीकरण से लेकर स्मार्टसिटी तक कुछ सवाल हुए लेकिन बाजू वाला इतिहास उदासीन।
इसके पीछे कारण अनेक। वकील अंकल संपन्न परिवार से थे,जवानी मौज मस्ती में कटी,वकालत पर गुरु की कृपा रही इस तरीके से उन्होंने बताया।
सफ़र लंबा था, बातें फिर शुरू हुई
आपकी इतनी ज्यादा उम्र हो चुकी है फिर भी आप एक मामले के लिए इतनी भागा दौड़ी कर रहे हैं? वकालत कुछ इसी तरह का पैशा है इस मे अब ना ही आना अच्छा है,जरूरत से ज्यादा खराब हो चुका है इस तरह की सलाह उन्होंने दी।
आप बेंगलुरु गए है क्या? हां कभी कभी चला जाता हूं लेकिन बातें कम हो पाती हैं, अंग्रेजी तो आ जाती है लेकिन कन्नड़ नही आती,मैने कहा आपको कन्नड़ सीखनी चाहिए क्या पता आने वाले समय मे आप हमेशा को वही स्थाई रूप से चले जाए। उन्होंने इस बात को एक कान से लेकर दूसरे कान से निकाल दिया।
पता नही क्यों जानबूझकर उनसे बाते होती ही जा रही थी और वो भी मेरे सही गलत सवालों के अपने अनुभव के साथ संवाद बनाए हुए थे।
बात फिर उनके बच्चों के बच्चो पर आई,तो फिर मैने पूछ लिया क्या छोटे बच्चो को मोबाइल फोन देना ठीक हैं?
थोड़ा सा सोच कर बोले आज कल बिना टेक्नोलॉजी के कुछ हो पा रहा हैं,हम जी ही नही सकते इसके बिना।
अंकल मेरी बात को खुद पर ले गए जबकि सवाल बच्चो पर था।
क्या बच्चे टेक्नोलॉजी से अपने खुद के वजूद को समझ पा रहे है? इस बार अंकल कुछ नही बोले।
रास्ते में बस का प्रवेश जंगल में होता है और काली रात के जंगल की शांति हम दोनो को भी कुछ समय के लिए
शांति -सी दे जाती है।
जबलपुर पास आने वाला था,लेकिन उसके पहले एक मंदिर आया और अंकल ने भगवान से दूर से ही आशीर्वाद ले लिया,मंदिर हिंदू था और अंकल हिंदू नही थे,अब मे अचरज मे पड़ गया लेकिन पूछ ही लिया आप हिंदू है? उन्होंने कहा क्या फर्क पड़ता है सब एक है,मेरे पूरे जीवन मे धर्म के दरवाज़े आस पास रहे,जीवन मे सिवाए मस्ती के कुछ नही किया लेकिन फिर भी एक दृष्टि मेरे ऊपर हमेशा बनी रहीं शायद वह यही है।
ये ज्ञान मेरी समझ से बाहर था।
बस स्टैंड आने से पहले वे बोले,तुम्हारे पास बहुत कुछ है पाने को जितना मैने कमाया है उतना तुम इस सफर के दौरान पा चुके हो।
आज सोचता हूं शायद वह अनुभव था। वकील अंकल आज भी याद आ जाते है।