“मेरे हालातों का जहर”
मुझको जीने नहीं देते है, मेरे हालातो का जहर.
जाने कैसे कैसे ढया है, जिम्मेदारीयों ने मुझ पे कहर.
कभी निराश होकर टूटती हू,
दो पल कि ख़ुशी को.
कभी टूटे काच से जख्म देते है, लोग जिंदगी को.
जाने किस पल थम जाये, जिंदगी कि डोर .
एक हाथ मे पकडू तो ,दूजे का मिलता नहीं कोई छोर.
मन करता है छोड़ दू,अब मे तेरा शहर.
मुझको जीने नहीं देते है,मेरे हालातो का जहर.
जाने कैसे कैसे ढया है,जिम्मेदारीयों ने मुझ पे कहर.
दिल मे सुई कि नोक सा,चुभ रहा है.
हर एक इंसान ,परिवार के नाम पर ठग रहा है.
लोगो ने तोला है,हर एक मोड़ पर.
रख दिया है,मेरे जमीर को झींझोड़ कर.
किया बताऊ, किया छुपाऊ.
कि मे परेशान हू ,किस कदर.
मुझको जीने नहीं देते है,मेरे हालातो का जहर.
जाने कैसे कैसे ढया है,
जिम्मेदारीयों ने मुझ पे कहर .