मेरे हर दर्द का हिसाब तुझे रखना होगा
मेरे हर दर्द का हिसाब तुझे रखना होगा
मेरे हालात क्यूं ऐसे तुझे समझना होगा।
आंखें छम-छम बरसती रहती हैं
जुल्मों सितम से सिसकती रहतीं हैं
मन पर लगी चोट सहा न जाय
अब ऐसे माहौल में रहा न जाय
ऐसे बदतर वक्त को तुझे बदलना होगा,
मेरे हर दर्द का हिसाब तुझे रखना होगा।
दूसरों के स्वार्थ के लिए मैं पीस रहीं हूं
हर दिन हर पल मैं घीस रहीं हूं
रातों को चैन दिन को आराम नहीं
दे दे सुकून ऐसा कोई शाम नहीं
मेरे एक एक मसले को तुझे निरखना होगा
मेरे हर दर्द का हिसाब तुझे रखना होगा
मेरे गुनाहों की इतनी सजा काफी है
क्या मेरा और भी गुनाह बाकी है
ग़म के बादल हर ओर छा रहें हैं
तेरे बिना खुद को कमज़ोर पा रहे हैं,
अपने किये की सजा भुगतना होगा
मेरे हर दर्द का हिसाब तुझे रखना होगा।
नूर फातिमा खातून “नूरी “(शिक्षिका)
जिला – कुशीनगर
उत्तर प्रदेश