{{{ मेरे श्रृंगार के वही गहने है }}}
मेरी आँखों में कुछ सपने है
अधूरे ही सही पर मेरे अपने है
कर सकू हासिल मुकाम अपनी
मेरे श्रृंगार के वही गहने है
जाने क्यों विचलित होता मन है
अतीत में खोया बचपन है
चलचित्र सी चल पड़ती है यादे सारी
निरंतर प्रयासरत जीवन है
ज़िन्दगी भी छल करती है जाने क्यों
परायो की चाह में अपने खोए जाने क्यों
क्या खोजता है ये मन बावरा
मौत ही सच्चा साथी बनता है जाने क्यों
ताउम्र ज़हन में कई सवाल रहा
दिल न दुखे किसी का ये ख्याल रहा
चाह के भी चाहत अधूरी रही
हर सांस दिल में यही मलाल रहा
किसको अपना दर्द सुनाए हम
कुछ पाने की आस में कितना गवाए हम
और कितना हिसाब लगाएगी ज़िन्दगी
जो छोड़ गया उसे क्या ठुकराए हम
झूठी तसल्ली से खुद क्या बहलाऊँ
आँखों को कितने झूठे ख़्वाब दिखलाऊँ
नही सुनता वो ख़ुदा भी कभी
चाहे कितनी ही अर्जी लगाऊँ
काश वो पुराने दिन लौट आए
वो बिछड़े साथी फिर से लौट आए
क्या मिला है चंद कागज कमा के
पुरानी तस्वीरों को तो देखा यादे लौट आए
मन कहाँ रहता है कभी इख्तियार में
उम्र सारी गुज़र रही है इन्तेज़ार में
वफ़ा कर के भी सफ़ाई दे रहे है
इंसान अकेला ही रह जाता है सच्चे प्यार में
मेरी ज़िंदगी की कोई दुआ न कर
ज़ख्म नासूर ही रहने दे दवा न कर
भरोसा कर के यही सीखा है मैंने
शब्दो से किसी का नियत का एतबार न कर
बातें बहुत सी थी बताने को
कहा तक समझते हम ज़माने को
मिन्नते भी हज़ार की हमने
वो ज़िद पे अड़ा था मुझे छोड़ जाने को
तेरे ख्याल अक्सर मुझसे लिपट जाते है
तेरे छुअन के एहसास से ही सिमट जाते है
तू कभी अपने दिल का हिस्सा नही बनाएगा
बस यही सोच के पीछे हट जाते है