मेरे शिव जी (१)।
आओ सुनाऊं एक कहानी ,
मैं हूं अपने शिव कि दीवानी ,
बचपन से जिसे सब कुछ माना ,
लोगो ने उन्हें शिव नाम से जाना ।
कभी पिता ,कभी भाई बनकर
रक्षा वह मेरी करते है ,
रहूं अगर उदास कभी मैं,
बनकर मित्र मुझे हसाते हैं।
अकेले जब बैठा करती हूं,
बातें मैं उनसे किया करती हूं ,
होकर खुश यूहीं उनका द,
धन्यवाद किया करती हूं।
बातें याद आती हैं जब यह ,
भला अपनी को कोई धन्यवाद ,
कहा करते हैं फिर उन्हें मैं,
सॉरी कह दिया करती हूं।
जिस दिन उनका नाम ना लू ,
मन मेरा अशांत हो जाता है ,
लेकर उनका नाम तभी ,
मुझे शांति मिल पाता है।
अगर आते वह कभी सामने मेरे ,
फिर मैं ना कभी उन्हें जाने देती ,
बनूं मैं अपने शिव कि गौरी ,
बस यही है चाहत मेरी।